Friday, August 29, 2014

भारत की संस्कृति

भारत की संस्कृति

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कथककली कलाकार कृष्णा के रूप में नृत्य करते है
भारत उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय सांस्कृतिक सीमाओं और क्षेत्रों की स्थिरता और ऐतिहासिक स्थायित्व को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र
भारत की संस्कृति कई चीज़ों को मिला-जुलाकर बनती है जिसमें भारत का लम्बा इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पडोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है. पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़ , भाषाएँ , प्रथाएँ और परंपराएँ इसकी एक-दूसरे से परस्पर संबंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों (religious systems), जैसे कि हिन्दू धर्मजैन धर्म , बौद्ध धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न धर्म और परम्पराओं (traditions) ने विश्व के अलग - अलग हिस्सों को भी काफ़ी प्रभावित किया है

भारतीय संस्कृति की महत्ता[संपादित करें]

भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है।
  • यह संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से यह मिस्रमेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी है।
  • प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता है। चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य सभी - मेसोपोटेमिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र ईरान, यूनान और रोम की-संस्कृतियाँ काल के कराल गाल में समा चुकी हैं, कुछ ध्वंसावशेष ही उनकी गौरव-गाथा गाने के लिए बचे हैं; किन्तु भारतीय संस्कृति कई हज़ार वर्ष तक काल के क्रूर थपेड़ों को खाती हुई आज तक जीवित है।
  • उसकी तीसरी विशेषता उसका जगद्गुरु होना है। उसे इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उसने न केवल महाद्वीप-सरीखे भारतवर्ष को सभ्यता का पाठ पढ़ाया, अपितु भारत के बाहर बड़े हिस्से की जंगली जातियों को सभ्य बनाया, साइबेरिया के सिंहल (श्रीलंका) तक और मैडीगास्कर टापू, ईरान तथा अफगानिस्तान से प्रशांत महासागर के बोर्नियो, बाली के द्वीपों तक के विशाल भू-खण्डों पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ा।
संस्कृति
  • सर्वांगीणता, विशालता, उदारता और सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा अग्रणी स्थान रखती है।

भाषा[संपादित करें]

भारत में बोली जाने वाली भाषाओँ की बड़ी संख्या ने यहाँ की संस्कृति और पारंपरिक विविधता को बढ़ाया है. १००० (यदि आप प्रादेशिक बोलियों और प्रादेशिक शब्दों को गिनें तो, जबकि यदि आप उन्हें नहीं गिनते हैं तो ये संख्या घट कर २१६ रह जाती है) भाषाएँ ऐसी हैं जिन्हें १०,००० से ज्यादा लोगों के समूह द्वारा द्वारा बोला जाता है, जबकि कई ऐसी भाषाएँ भी हैं जिन्हें १०,००० से कम लोग ही बोलते है.भारत में कुल मिलाकर ४१५ भाषाएं उपयोग में हैं भारतीय संविधान ने संघ सरकार के संचार के लिए हिंदी और अंग्रेजी, इन दो भाषाओं के इस्तेमाल को आधिकारिक भाषा (official language) घोषित किया है व्यक्तिगत राज्यों के उनके अपने आतंरिक संचार के लिए उनकी अपनी राज्य भाषा (state's language) का इस्तेमाल किया जाता है भारत में दो प्रमुख भाषा सम्बन्धी परिवार हैं - भारतीय-आर्य भाषाएं और द्रविण भाषाएँ, इनमें से पहला भाषा के परिवार मुख्यतः भारत के उत्तरी (northern), पश्चिमी (western), मध्य (central) और पूर्वी (eastern) क्षेत्रों के फैला हुआ है जबकि दूसरा भाषा परिवार भारत के दक्षिणी भाग में.भारत का अगला सबसे बड़ा भाषा परिवार है एस्ट्रो-एशियाई (Austro-Asiatic) भाषा समूह, जिसमें शामिल हैं भारत के मध्य और पूर्व में बोली जाने वाली मुंडा भाषाएँ (Munda languages), उत्तरपूर्व में बोई जाने वाली खासी भाषाएँ (Khasian languages), और निकोबार द्वीप (Nicobarese languages) में बोली जाने वाली निकोबारी भाषाएँ (Nicobar Islands).भारत का चौथा सबसे बड़ा भाषा परिवार है तिब्बती- बर्मन भाषाओँ (Tibeto-Burman languages) का परिवार जो अपने आप में चीनी- तिब्बती भाषा परिवार का एक उपसमूह है.

धर्म[संपादित करें]

धर्मजनसंख्याप्रतिशत
सभी धर्म१,०२८,६१०,३२८१००.००%
हिन्दू८२७,५७८,८६८८०.४५६%
मुसलमान१३८,१८८,२४०१३.४३४%
ईसाई२४,०८०,०१६२.३४१%
सिख१९,२१५,७३०१.८६८%
बौद्ध७,९५५,२०७०.७७३%
जैन४,२२५,०५३०.४११%
अन्य६,६३९,६२६०.६४५४%
धर्म नहीं कहा७२७,५८८०.०७%
अब्राहमिक के बाद भारतीय धर्म (Indian religions) विश्व के धर्मों में प्रमुख है , जिसमें हिन्दू धर्मबौद्ध धर्मसिख धर्मजैन धर्म , आदि जैसे धर्म शामिल हैं आज, हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म क्रमशः दुनिया में तीसरे और चौथे सबसे बड़े धर्म हैं, जिनमें लगभग १.४ बिलियन अनुयायी साथ हैं
विश्व भर में भारत में धर्मों में विभिन्नता सबसे ज्यादा है , जिनमें कुछ सबसे कट्टर धार्मिक संस्थायें और संस्कृतियाँ शामिल हैं। आज भी धर्म यहाँ के ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों के बीच मुख्य और निश्चित भूमिका निभाता है।
८०.४% से ज्यादा लोगों का धर्म हिन्दू धर्म है। कुल भारतीय जनसँख्या का १३.४% हिस्सा इस्लाम धर्म को मानता है[1] सिख धर्म , जैन धर्म और खासकर के बौद्ध धर्मका केवल भारत में नहीं बल्कि पुरे विश्व भर में प्रभाव है ईसाई धर्मपारसी धर्मयहूदी और बहाई धर्म (Bahá'í Religion ) भी प्रभावशाली हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है। भारतीय जीवन में धर्म की मज़बूत भूमिका के बावजूद नास्तिकता और अज्ञेयवादियों (agnostic) का भी प्रभाव दिखाई देता है।

समाज[संपादित करें]

समीक्षा[संपादित करें]

यूजीन एम. मकर के अनुसार, भारतीय पारंपरिक संस्कृति अपेक्षाकृत कठोर सामाजिक पदानुक्रम द्वारा परिभाषित किया गया हैउन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को छोटी उम्र में ही उनकी भूमिकाओं और समाज में उनके स्थान के बारे में बताते रहा जाता है[2] उनको इस बात से और बल मिलता है की और इसका मतलब यह है कि बहुत से लोग इस बात को मानते हैं की उनकी जीवन को निर्धारण करने में देवताओं और आत्माओं की ही पूरी भूमिका होती है[2] धर्म विभाजित संस्कृति जैसे कई मतभेद.[2] जबकि, इनसे कहीं ज्यादा शक्तिशाली विभाजन है हिन्दू परंपरा में मान्य अप्रदूषित और प्रदूषित व्यवसायों का.[2] सख्त सामाजिक अमान्य लोग इन हजारों लोगों के समूह को नियंत्रित करते हैं[2] हाल के वर्षों, खासकर शहरों में, इनमें से कुछ श्रेणी धुंधली पड़ गई हैं और कुछ घायब हो गई हैं[2] एकल परिवार(Nuclear family) भारतीय संस्कृति के लिए केंद्रीय है.महत्वपूर्ण पारिवारिक सम्बन्ध उतनी दूर तक होते हैं जहाँ तक समान गोत्र (gotra) के सदस्य हैं, गोत्र हिन्दू धर्मं के अनुसार पैतृक यानि पिता की ओर से मिले कुटुंब या पंथ के अनुसार निर्धारित होता है जो की जन्म के साथ ही तय हो जाता है.[2] ग्रामीण क्षेत्रों में, परिवार के तीन या चार पीढ़ियों का एक ही छत के नीचे रहना आम बात है[2]वंश या धर्म प्रधान (Patriarch) प्रायः परिवार के मुद्दों को हल करता है.[2]
विकासशील देशों में, भारत अपनी निम्न स्तर की भौगोलिक और व्यावसायिक गतिशीलता की वजह से वृहद रूप से दर्शनीय है यहाँ के लोग कुछ ऐसे व्यवसाय को चुनते हैं जो उनके माता-पिता पहले से करते आ रहे हैं और कभी कभार भौगोलिक रूप से वो अपने समाज से दूर जाते हैं[3]

जाति व्यवस्था[संपादित करें]

चित्र:PopulationEstimations.jpg
संख्या के अनुसार जातियों के विभाजन को प्रधार्षित करता हुआ विवरणपट एस सी अनुसूचित जातियों (Scheduled castes) के और एस टी अनुसूचित जनजातियों के सन्दर्भ में कहा जाता है
भारतीय पारंपरिक संस्कृति अपेक्षाकृत कठोर सामाजिक पदानुक्रम द्वारा परिभाषित किया गया है[2]भारतीय जाति प्रथा भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) मेंसामाजिक वर्गीकरण (social stratification) और सामाजिक प्रतिबंधों का वर्णन करती है , इस प्रथा में समाज के विभिन्न वर्ग हजारों सजातीय विवाह (endogamous) और आनुवाशिकीय समूहों के रूप में पारिभाषित किये जाते हैं जिन्हें प्रायः जाति (jāti) एस या कास्ट (caste) के नाम से जाना जाता है इन जातियों के बीच विजातीय समूह(exogamous group) भी मौजूद है , इन समूहों को गोत्र के रूप में जाना जाता है . गोत्र (gotras) , किसी व्यक्ति को अपने कुतुम्भ द्वारा मिली एक वंशावली (clan) की पहचान है , यद्यपि कुछ उपजातियां जैसे की शकाद्विपी (Shakadvipi) ऐसी भी हैं जिनके बीच एक ही गोत्र में विवाह स्वीकार्य है , इन उपजातियों में प्रतिबंधित सजातीय विवाह जानी एक जाति के बीच विवाह को प्रतिबंद्धित करने के लिए कुछ अन्य तरीकों को अपनाया जाता है (उदाहरण के लिए - एक ही उपनाम वाले वंशों के बीच विवाह पर प्रतिबन्ध लगाना)
भले ही जाति व्यवस्था को मुख्यतः हिन्दू धर्म के साथ जोड़कर पहचाना जाता है लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में अन्य कई धर्म जैसे की मुसलमान (Muslim) और ईसाई (Christian) धर्म के कुछ समूहों में भी इस तरह की व्यवस्था देखी गई है[4] भारतीय संविधान ने समाजवाद , धर्मनिरपेक्षता (secular), लोकतंत्र जैसे सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए जाति के ऊपर आधारित भेदभावों को गिअर्कानूनी घोषित कर दिया है[5] बड़े शहरों में ज़्यादातर इन जाति बंधनों को तोड़ दिया गया है ,[6] हालाँकि ये आज भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है फिर भी,आधुनिक भारत में, जाति व्यवस्था, जाति के आधार पर बांटे वाली राजनीति और अलग - अलग तरीके की सामाजिक धारणाओं जैसे कई रूप में जीवित भी है और प्रबल भी होता जा रहा है[7][8]
सामान्य शब्दों में, जाति के आधार पर पाँच प्रमुख विभाजन हैं:[2]
  • ब्राह्मण - "विद्वान समुदाय," जिनमें याजक , विद्वान , विधि विशेषज्ञ , मंत्री, और राजनयिक शामिल हैं.
  • क्षत्रिय - "उच्च और निम्न मान्यवर या सरदार" जिनमें राजा, उच्चपद के लोग, सैनिक , और प्रशासक को शामिल है.
  • वैश्य - "व्यापारी और कारीगर समुदाय" जिनमें सौदागर , दुकानदार , व्यापारी और खेत के मालिक शामिल है.
  • क्षुद्र - "सेवक या सेवा प्रदान करने वाली प्रजाति" में अधिकतर गैर-प्रदूषित कार्यो में लगे शारीरिक और कृषक श्रमिक शामिल हैं।
इससे पहले भारत में, वहाँ एक अतिरिक्त जाति को 'अछूत' के रूप में जाना जाता था , हालाँकि इस प्रणाली को हिंदू धर्म के कानून के अनुसार अब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।
ब्राह्मण वर्ण स्वयं को हिंदू धर्म के चारों वर्णों (four varnas) में सर्वोच्च स्थान पर काबिज होने का दावा करता है[9] दलित शब्द उन लोगों के समूह के लिए एक स्वयंभू पदनाम है जिनको अछूत (untouchables) या नीची जाति (caste) का माना जाता है। स्वतंत्र भारत में जातिवाद से प्रेरित हिंसा और घृणा अपराध (hate crime) को बहुत ज़्यादा देखा गया।

परिवार[संपादित करें]

में होने वाली एक हिंदू विवाह समारोह
भारतीय समाज सदियों से तयशुदा शादियों (Arranged marriages) की परंपरा रही है।आज भी भारतीय लोगों का एक बड़ा हिस्सा अपने माता-पिता या अन्य सम्माननीय पारिवारिक सदस्यों द्वारा तय की गई शादियाँ ही करता है,जिसमें दूल्हा-दुल्हन की सहमति भी होती है[10] तयशुदा शादियाँ कई चीज़ों का मेल कराने के आधार पर उन्हीं को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती हैं जैसे कि उम्र, ऊँचाई, व्यक्तिगत मूल्य और पसंद, साथ ही उनके परिवारों की पृष्ठभूमि (धन, समाज में स्थान) और उनकी जाति (caste) के साथ - साथ युगल की कुन्दलिनीय (horoscopes) अनुकूलता
भारत में शादियों को जीवन भर के लिए माना जाता है[11] और यहाँ तलाक की दर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की ५०% की तुलना में मात्र १.१% है[12] . तयशुदा शादियों में तलाक की दर और भी कम होती है। हाल के वर्षों में तलाकदर में काफी वृद्धि हो रही है:
इस बात पर अलग अलग राय है कि इसका मतलब क्या है: पारंपरिक लोगों के लिए ये बढती हुई संख्या समाज के विघटन को प्रदर्शित करती है, जबकि आधुनिक लोगों के अनुसार इससे ये बात पता चलती है कि समाज में महिलाओं का एक नया और स्वस्थ सशक्तिकरण हो रहा है.[13]
हालाँकि , बाल विवाह (child marriage) को १८६० में ही गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में ये प्रथा आज भी जारी है[14] यूनिसेफ द्वारा संसार के बच्चों की दशा के बारे में जारी रिपोर्ट " स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड चिल्ड्रेन -२००९" में ४७% ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय महिलाएं जो कि २०-२४ साल की होंगी उनकी शादी को विवाह के लिए वैध १८ साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती हैं[15] रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि विश्व में ४०% होने वाले बाल विवाह अकेले भारत में ही होते हैं[16]
भारतीय नाम (Indian name) भिन्न प्रकार की प्रणालियों और नामकरण प्रथा (naming conventions) पर होती हैं , जो की अलग -अलग शेत्रों के अनुसार बदलती रहती हैं नाम भी धर्म और जाति से प्रभावित होती हैं और वो धर्म या महाकाव्यों से लिए जा सकते हैं भारत की आबादी अनेक प्रकार की भाषाएं बोलती हैं
समाज में नारी की भूमिका अक्सर घर के काम काज को करने की और समुदायों की नि: स्वार्थ सेवा करने का काम होता है[2] महिलाओं और महिलाओं के मुद्दों समाचारों में केवल ७-१४% ही दिखाई देते हैं[2]अधिकांश भारतीय परिवारों में, महिलाओं को उनके नाम पर संपत्ति नहीं मिलती है , और उन्हें पैतृक संपत्ति का एक हिस्सा भी नहीं मिलता है.[17] कानून को लागू करने मे कमजोरी के कारण , महिल्लाएं आज भी ज़मीन के छोटे से टुकड़े और बहुत कम धन मे प्राप्त होता है[18] कई परिवारों में, विशेष रूप से ग्रामीण लोगों मे, लड़कियों और महिलाओं को परिवार के भीतर पोषण भेदभाव का सामना करना पड़ता है और इसी वजह से उनमें खून की कमी की शिकायत रहती है साथ- साथ वो कुपोषित भी होती हैं[17]
रंगोली (या कोलम) एक परंपरागत कला है जो कि भारतीय महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हैलोकप्रिय महिला पत्रिकाएं जिनमें फेमिना (Feminaगृहशोभा (Grihshobha) , वनिता (vanita) , वूमेनस एरा , आदि शामिल हैं

पशु[संपादित करें]

गाय को चेन्नई
में स्थित आलंकृत गोप्पुरम मंदिर]] मे रंगा या चित्रित किया जाता है
इन्हें भी देखें: Animal husbandry in India एवं Sacred cow
कई भारतीयों के पास अपने मवेशी होते हैं जैसे कि गाय-बैल या भेड़
आज भी हिन्दू बहुसंख्यक देशों जैसे भारत और नेपाल में गाय के दूध का धार्मिक रस्मों में महत्वपूर्ण स्थान है.समाज में अपने इसी ऊंचे स्थान की वजह से गायें भारत के बड़े बड़े शहरों जैसे कि दिल्ली में भी व्यस्त सड़कों के पर खुले आम घूमती हैं. कुछ जगहों पर सुबह के नाश्ते के पहले इन्हें एक भोग लगाना शुभ या सौभाग्यवर्धक माना जाता है.जिन जगहों पर गोहत्या एक अपराध है वहां किसी नागरिक को गाय को मार डालने या उसे चोट पहुँचाने के लिए जेल भी हो सकती है.
गाय को खाने के विरुद्ध आदेश में एक प्रणाली विकसित हुई जिसमें सिर्फ एक जातिच्युत मनुष्य (pariah) को मृत गायों को भोजन के रूप में दिया जाता था और सिर्फ वही उनके चमड़े (leather) को निकाल सकते थे. सिर्फ दो राज्यों :पश्चिम बंगाल और केरल के अतिरिक्त हर प्रान्त में गोहत्या निषिद्ध है.हालाँकि गाय के वध के उद्देश्य से उन्हें इन राज्यों में ले जाना अवैध है, लेकिन गायों को नियमित रूप से जहाज़ में सवार कर इन राज्यों में ले जाया जाता है.[19] "गाय हमारी माता है" ऐसा विभिन्न जगह कहा जाता है, खास कर बुंदेलखण्ड की तरफ़।

परम्परा एवं रीति[संपादित करें]

नमस्ते या नमस्कार या नमस्कारम् भारतीय उपमहाद्वीप में अभिनन्दन या अभिवादन करने के सामान्य तरीके हैं। यद्यपि नमस्कार को नमस्ते की तुलना में ज्यादा औपचारिक माना जाता है, दोनों ही गहरे सम्मान के सूचक शब्द हैं. आम तौर पर इसे भारत और नेपाल में हिन्दूजैन और बौद्ध लोग प्रयोग करते हैं, कई लोग इसे भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी प्रयोग करते हैं. भारतीय और नेपाली संस्कृति में ये शब्द लिखित या मौखिक बोलचाल की शुरुआत में प्रयोग किया जाता है. हालाँकि विदा होते समय भी हाथ जोड़े हुए यही मुद्रा बिना कुछ कहे बनायी जाती है. योग में , योग गुरु और योग शिष्यों द्वारा बोले जाने वाली बात के आधार पर नमस्ते का मतलब "मेरे भीतर की रोशनी तुम्हारे अन्दर की रोशनी का सत्कार करती है " होता है
शाब्दिक अर्थ में , इसका मतलब है "मैं आपको प्रणाम करता हूँ" यह शब्द संस्कृत शब्द (नमस्): प्रणाम (bow), श्रद्धा (obeisance) , आज्ञापालन , वंदन (salutation) और आदर (respect) और (ते): "आपको" से लिया गया है.
किसी और व्यक्ति से कहे जाते समय, साधारण रूप से इसके साथ एक ऐसी मुद्रा बनाई जाती है जिसमें सीने या वक्ष के सामने दोनों हाथों की हथेलियाँ एक दूसरे को छूती हुई, और उंगलियाँ ऊपर की ओर होती हैं. बिना कुछ कहे भी यही मुद्रा बनकर यही बात कही जा सकती है.
"दीवाली, प्रकाश पर्व या त्यौहार, पूरे भारत में हिन्दुओं द्वारा दीये (diyasजलाकर औररंगोलीबनाकर मनाया जाता है.

त्यौहार[संपादित करें]

भारत एक बहु सांस्कृतिक और बहु धार्मिक समाज होने के कारण विभिन्न धर्मों के त्योहारों और छुट्टियों को मनाता है भारत में तीन राष्ट्रीय अवकाश (national holidays in India)है,स्वतंत्रता दिवस , गणतंत्र दिवस ,और गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) और इन तीनो को हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है इसके अलावा , कई राज्यों और क्षेत्रों में वहाँ के मुख्य धर्म और भाषागत जनसांख्यिकी पर आधारित स्थानीय त्यौहार हैं लोकप्रिय धार्मिक त्यौहार में शामिल हैं हिन्दुओं का दिवाली , गणेश चतुर्थी(Ganesh Chaturthi, होली, नवरात्रि,रक्षाबंधन (Rakshabandhanऔर दशहरा(Dussehra). कई खेती त्यौहार (harvest festival) जैसे की संक्रांति (Sankranthi,पोंगल (Pongal), और ओणम (Onamभी काफी लोकप्रिय त्यौहार है कुम्भ का मेला(Kumb Melaहर १२ साल के बाद ४ अलग -अलग स्थानों पर मनाया जाने वाला एक बहुत बड़ा सामूहिक तीर्थ यात्रा उत्सव है जिसमें करोंडों हिन्दू हिस्सा लेते हैं भारत में कुछ त्योहारों कई धर्मों द्वारा मनाया जाता है.इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं हिन्दुओं , सिखों और जैन समुदाय के लोगों द्वारा मनाई जाने वाली दिवाली और बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा (Buddh Purnima. इस्लामी त्यौहार जैसे की ईद-उल-फ़ित्र , ईद -उल-अधा (Eid al-Adha, और रमजान(Ramadanभी पूरे भारत के मुसलामानों द्वारा मनाये जाते हैं

भोजन[संपादित करें]

करी
और सब्ज़ी.
भातीय व्यंजनों में से ज़्यादातर में मसालों और जड़ी बूटियों का परिष्कृत और तीव्र प्रयोग होता है इन व्यंजनों के हर प्रकार में पकवानों का एक अच्छा-खासा विन्यास और पकाने के कई तरीकों का प्रयोग होता है यद्यपि पारंपरिक भारितीय भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा शाकाहारी है लेकिन कई परम्परागत भारतीय पकवानों में मुर्गा(chicken), बकरी (goat), भेड़ का बच्चा (lamb), मछली, और अन्य तरह के मांस (meat) भी शामिल हैं
भोजन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो रोज़मर्रा के साथ -साथ त्योहारों में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है कई परिवारों में , हर रोज़ का मुख्य भोजन दो से तीन दौर में , कई तरह की चटनी और अचार के साथ , रोटी (roti) और चावल के रूप में कार्बोहाइड्रेट के बड़े अंश के साथ मिष्ठान (desserts) सहित लिया जाता है भोजन एक भारतीय परिवार के लिए सिर्फ खाने के तौर पर ही नहीं बल्कि कई परिवारों के एक साथ एकत्रित होने सामाजिक संसर्ग बढाने के लिए भी महत्वपूर्ण है
विविधता भारत के भूगोल , संस्कृति और भोजन की एक पारिभाषिक विशेषता है भारतीय व्यंजन अलग-अलग क्षेत्र के साथ बदलते हैं और इस उपमहाद्वीप(subcontinent) की विभिन्न तरह की जनसांख्यिकी (varied demographics) और विशिष्ठ संस्कृति को प्रतिबिंबित करते हैं आम तौर पर , भारतीय व्यंजन चार श्रेणियों में बाते जा सकते हैं : उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम भारतीय व्यंजन इस विविधता के बावजूद उन्हें एकीकृत करने वाले कुछ सूत्र भी मौजूद हैं मसालों का विविध प्रयोग भोजन तैयार करने का एक अभिन्न अंग है, ये मसाले व्यंजन का स्वाद बढाने और उसे एक ख़ास स्वाद और सुगंध देने के लिए प्रयोग किये जाते हैं इतिहास में भारत आने वाले अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों जैसे की पारसी (Persians) , मुग़ल और यूरोपीय शक्तियों ने भी भारत के व्यंजन को काफी प्रभावित किया है

वस्त्र-धारण[संपादित करें]

त्रिपुरा की की लडकियां पारंपरिक नृत्य महोत्सव में भाग लेते समय एक बिंदी (bindi)लगाती हैं
महिलाओं के लिए पारंपरिक भारतीय कपडों में शामिल हैं , साड़ी , सलवार कमीज़ (salwar kameez) , और घाघरा चोली (लहंगा)धोतीलुंगी (Lungi),और कुर्ता पुरुषों(men) के पारंपरिक वस्त्र हैं बॉम्बे , जिसे मुंबई के नाम से भी जाना जाता है भारत की फैशन राजधानी है भारत के कुछ ग्रामीण हिस्सों में ज़्यादातर पारंपरिक कपडे ही पहने जाते हैं दिल्लीमुंबई,चेन्नईअहमदाबाद, और पुणे ऐसी जगहें हैं जहां खरीदारी करने के शौकीन लोग जा सकते हैं दक्षिण भारत के पुरुष सफ़ेद रंग का लंबा चादर नुमा वस्त्र पहनते हैं जिसे अंग्रेजी में धोती और तमिल में वेष्टी कहा जाता है धोती के ऊपर , पुरुष शर्ट, टी शर्ट या और कुछ भी पहनते हैं जबकि महिलाएं साड़ी पहनती हैं जो की रंग बिरंगे कपडों और नमूनों वाला एक चादरनुमा वस्त्र हैं यह एक साधारण या फैंसी ब्लाउज के ऊपर पहनी जाती है यह युवा लड़कियों और महिलाओं द्वारा पहना जाता है.छोटी लड़कियां पवाडा पहनती हैं पवाडा एक लम्बी स्कर्ट है जिसे ब्लाउज के नीचे पहना जाता है.दोनों में अक्सर खुस्नूमा नमूने बने होते हैं बिंदी (Bindi) महिलाओं के श्रृंगार का हिस्सा है.परंपरागत रूप से, लाल बिंदी (या सिन्दूर ) केवल शादीशुदा हिंदु महिलाओं द्वारा ही लगाईं जाती है, लेकिन अब यह महिलाओं के फैशन का हिस्सा बन गई है .[20] भारतीय और पश्चिमी पहनावा (Indo-western clothing) , पश्चिमी (Western) और उपमहाद्वीपीय (Subcontinentalफैशन(fashion) का एक मिला जुला स्वरूप हैं अन्य कपडों में शामिल हैं - चूडीदार (Churidar), दुपट्टा (Dupatta) , गमछा (Gamchha), कुरता , मुन्दुम नेरियाथुम(Mundum Neriyathum) , शेरवानी .

साहित्य[संपादित करें]

इतिहास[संपादित करें]

भारतीय साहित्य की सबसे पुरानी या प्रारंभिक कृतियाँ मौखिक (orally) रूप से प्रेषित थीं.संस्कृत साहित्य की शुरुआत होती है 5500 से 5200 ईसा पूर्व के बीच संकलितऋग्वेद से जो की पवित्र भजनों का एक संकलन है. संस्कृत के महाकाव्य रामायण और महाभारत पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व के अंत में आये.पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की पहली कुछ सदियों के दौरान शास्त्रीय संस्कृत (Classical Sanskrit) खूब फली-फूली, तमिल (Tamilसंगम साहित्य और पाली केनोन (Pāli Canon) ने भी इस समय काफी प्रगति की.
मध्ययुगीन काल में,क्रमशः ९ वीं और ११ वीं शताब्दी में कन्नड़ और तेलुगु (Telugu) साहित्य की शुरुआत हुई,[22] इसके बाद १२ वीं शताब्दी में मलयालम साहित्य की पहली रचना हुई.बाद में, मराठीबंगालीहिंदी की विभिन्न बोलियों, पारसी (Persian) और उर्दू के साहित्य भी उजागर होने शुरू हो गए
ब्रिटिश राज के दौरान, रवीन्द्रनाथ टैगोर के कार्यों द्वारा आधुनिक साहित्य का प्रतिनिधित्व किया गया है , रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh 'Dinkar') ,सुब्रमनिया भारती , राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) , कुवेम्पु (Kuvempu), बंकिमचंद्र चट्टोपाध्यायमाइकल मधुसूदन दत्तमुंशी प्रेमचन्दमुहम्मद इकबालदेवकी नंदन खत्री (Devaki Nandan Khatri) प्रसीद्ध हो गए हैं समकालीन भारत में, जिन लेखकों को आलोचकों के बीच प्रशंसा मिली वो हैं : गिरीश कर्नाड,अज्ञेयनिर्मल वर्माकमलेश्वर , वैकोम मुहम्मद बशीर (Vaikom Muhammad Basheer), इंदिरा गोस्वामी (Indira Goswami), महाश्वेता देवीअमृता प्रीतम,मास्ति वेंकटेश अयेंगरकुरतुलियन हैदर और थाकाजी सिवासंकरा पिल्लई (Thakazhi Sivasankara Pillai) और कुछ अन्य लेखकों ने आलोचकों की प्रशंसा प्राप्त की समकालीन भारतीय साहित्य में, दो प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार हैं, ये हैं साहित्य अकादमी फैलोशिप (Sahitya Akademi Fellowship) और ज्ञानपीठ पुरस्कारहिंदीऔर कन्नड़ में सात , मलयालम और मराठी में चार उर्दू में तीन ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए गए हैं[23]

काव्य[संपादित करें]

कुरुक्षेत्र के युद्ध (Battle of Kurukshetra) का दृष्टान्त ७४,००० से ज्यादा छंदों , लम्बे गद्य अनुच्छेदों और १.८ करोड़ शब्दों वाला महाभारतदुनिया की सबसे लम्बे महाकाव्यों में से एक है
भारत में ऋग्वेद के समय से कविता के साथ-साथ गद्य रचनाओं की मजबूत परंपरा हैकविता प्रायः संगीत की परम्पराओं से सम्बद्ध होती है , और कविताओं का एक बड़ा भाग धार्मिक आंदोलनों पर आधारित होता है या उनसे जुड़ा होता है लेखक और दार्शनिक अक्सर कुशल कवि भी होते थे आधुनिक समय में , भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्र वाद और अहिंसा को प्रोत्साहित करने के लिए कविता ने एक महत्वपूर्ण हथियार की भूमिका निभाई है इस परंपरा उदाहरण आधुनिक काल मेंरवीन्द्रनाथ टैगोर और के एस नरसिम्हास्वामी (K. S. Narasimhaswamy) की कविताओं , मध्य काल में बासव (Basava) (वचन (vachana)) , कबीर औरपुरंदरदास (पद और देवार्नामस) और प्राचीन काल में महाकाव्यों के रूप में मिलता है टगोर की गीतांजलि कविता से दो उदाहरण भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किये गए हैं

महाकाव्य[संपादित करें]

रामायण और महाभारत प्राचीनतम संरक्षित और आज भी भारत के जाने माने माहाकाव्य है ; उनके कुछ और संस्करण दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे की थाईलैंडमलेशिया और इंडोनेशिया में अपनाए गए हैं इसके अलावा , शास्त्रीय तमिल भाषा में पांच महाकाव्य हैं - सिलाप्पधिकाराम (Silappadhikaram) , निमेगालाई(Manimegalai) , जीवागा चिंतामणि (Jeevaga-chintamani) , वलैयापति और कुण्डलकेसि इनके अन्य क्षेत्रीय रूप और असम्बद्ध महाकाव्यों में शामिल हैं तमिलकंब रामायण , कन्नड़ में आदिकवि पम्पा (Adikavi Pampa) द्वारा पम्पा भारता , कुमार वाल्मीकि द्वारा तोरवे रामायण , कुमार व्यास (Kumaravyasa) द्वारा कर्नाट भारता कथा मंजरी , हिंदी रामचरितमानस , मलयालम अध्यात्मरामायणम् (Adhyathmaramayanam)

प्रदर्शन कला[संपादित करें]

संगीत[संपादित करें]

पंचावाद्यम केरल में एक संगीत मंदिर है.
भारतीय संगीत में विभिन्न प्रकार के धार्मिक , लोक (folk) , लोकप्रिय (popular) , पॉप (pop) और शास्त्रीय संगीत शामिल हैं भारतीय संगीत का सबसे पुराना संरक्षित उदाहरण है सामवेद की कुछ धुनें जो आज भी निश्चित वैदिक श्रोता(Shrauta) बलिदान में गाई जाती है भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा हिंदू ग्रंथों से काफी प्रभावित है.इसमें कर्नाटकऔर हिन्दुस्तानी संगीत और कई राग शामिल हैं . ये कई युगों के दौरान विकसित हुआ और इसका इतिहास एक सहस्राब्दी तक फैला हुआ है . यह हमेशा से धार्मिक प्रेरणा, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और शुद्ध मनोरंजन का साधन रहा है विशिष्ठ उपमहाद्वीप रूपों के साथ ही इसमें अन्य प्रकार के ओरिएंटल संगीत से भी कुछ समानताएं हैं
पुरंदरदास को कर्णाटक संगीत का पिता माना जाता है (कर्नाटक संगीता पितामह ).[24][25][26] उन्होंने अपने गीतों का समापन भगवान् पुरंदर विट्टल के वंदन के साथ किया और माना जात है की उन्होंने कन्नड़ भाषा में ४७५०००[27] गीत रचे हालाँकि, केवल १००० के बारे में आज जाना जाता है.[24][28]

नृत्य[संपादित करें]

भारतीय नृत्य (Indian dance) में भी लोक और शास्त्रीय रूपों में कई विविधताएं है जाने माने लोक नृत्यों (folk dances) में शामिल हैं पंजाब (Punjab) का भांगड़ा,असम का बिहू (bihu)झारखंड और उड़ीसा का छाऊ (chhau) , राजस्थान का घूमर (ghoomar) , गुजरात का डांडिया (dandiya) और गरबा (garba), कर्नाटक जायक्षगान (Yakshagana) , महाराष्ट्र का लावनी (lavani) और गोवा का देख्ननी (Dekhnni)भारत की संगीत, नृत्य, और नाटक की राष्ट्रीय अकादमी द्वारा आठ नृत्य रूपों, कई कथा रूपों और पौराणिक (mythological) तत्व वाले कई रूपोंको शास्त्रीय नृत्य का दर्जा (classical dance status) दिया गया है.ये हैं: तमिलनाडु काभरतनाट्यमउत्तर प्रदेश का कथककेरल का कथककली (kathakali) और मोहिनीअट्टमआंध्र प्रदेश का कुच्चीपुडी (kuchipudi) , मणिपुर का मणिपुरी(manipuri) , उड़ीसा का ओडिसी और असम का सत्त्रिया (sattriya).[29]
संक्षिप्त रूप से कहें तो कलारिप्पयाट्टू (Kalarippayattu) या कलारी (Kalari) को दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट (martial art) माना जाता है.यह मल्लपुराण जैसे ग्रंथों के रूप में संरक्षित है.कलारी और उसके साथ साथ उसके बीद आये मार्शल आर्ट के कुछ रूपों के बारे में ये भी माना जाता है की बौद्ध धर्म की तरह ये भी चीन तक पहुँच चूका है और अंततः इसी से कुंग-फु का विकास हुआ.बाद में आने वाली मार्शल आर्ट्स हैं- गतकापहलवानी (Pehlwani) और मल्ल-युद्ध (Malla-yuddha) भारतीय मार्शल आर्ट्स को कई महान लोगों ने अपनाया था जिनमें शामिल हैं बोधिधर्मा जो भारतीय मार्शल आर्ट्स को चीन तक ले गए.

नाटक और रंगमंच[संपादित करें]

भारतीय नाट्य की एकमात्र जीवित परंपरा है (संस्कृतकुटीयट्टम (Kutiyattam) , जो किकेरल में संरक्षित है. भासा के नाटक अभिषेकनाटक में रावन की भूमिका में गुरु नाट्याचार्यमणि माधव चकयार (Māni Mādhava Chākyār).
भारतीय संगीत और नृत्य के साथ साथ भारतीय नाटक और थियेटर का भी अपने लम्बा इतिहास है.कालिदास के नाटक शकुंतला (Shakuntala) और मेघदूत कुछ पुराने नाटक हैं, जिनके बाद भासा के नाटक आये.२००० साल पुरानी केरल की कुटियट्टम (Kutiyattam) विश्व की सबसे पुरानी जीवित थियेटर परम्पराओं में से एक है.यह सख्ती से नाट्य शास्त्र का पालन करती है [30] कला के इस रूप में भासा के नाटक बहुत प्रसिद्द हैं.नाट्याचार्य ( स्वर्गीय) पद्म श्री मणि माधव चकयार (Māni Mādhava Chākyār) - अविवादित रूप से कला के इस रूप और अभिनय (Abhinaya) के आचार्य - ने इस पुराणी नाट्य परंपरा को लुप्त होने से बचाया और इसे पुनर्जीवित किया.वो रस अभिनय (Rasa Abhinaya) में अपनी महारत के लिए जाने जाते थे.उन्होंने कालिदास के नाटक अभिज्ञान शकुंतला (Abhijñānaśākuntala),विक्रमोर्वसिया (Vikramorvaśīya) और मालविकाग्निमित्र (Mālavikāgnimitra) ; भासा के स्वप्नवासवदत्ता (Swapnavāsavadatta) और पंचरात्र(Pancharātra) ; हर्ष के नगनान्दा (Nagananda) आदि नाटकों को कुटियट्टम रूप में प्रर्दशित करना शुरू किया[31][32]
लोक थिएटर की परंपरा भारत के अधिकाँश भाषाई क्षेत्रों में लोकप्रिय है इसके अलावा ,ग्रामीण भारत में कठपुतली थियेटर की समृद्ध परंपरा है जिसकी शुरुआत कम से कम दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी इसका पाणिनि पर पतंजलि के वर्णन ) में उल्लेख किया गया है समूह थियेटर भी शहरों में पनप रहा है, जिसकी शुरुआत गब्बी वीरंन्ना (Gubbi Veeranna)[33]उत्पल दत्त (Utpal Dutt), ख्वाज़ा अहमद अब्बास (Khwaja Ahmad Abbas), के वी सुबन्ना (K. V. Subbanna) जैसे लोगों द्वारा की गई और जो आज भी नंदिकर (Nandikar) , निनासम (Ninasam) और पृथ्वी थियेटर (Prithvi Theatre) जैसे समूहों द्वारा बरकरार राखी गई है

दृश्य कला[संपादित करें]

चित्रकारी[संपादित करें]

अजंता की गुफाओं से जतका (Jataka tales) की कहानियां
भारतीय चित्रकला की सबसे शुरूआती कृतियाँ पूर्व ऐतिहासिक (pre-historic) काल में रॉक पेंटिंग के रूप में थी . भिम्बेद्का जैसी जगहों पाये गए पेट्रोग्लिफ(petroglyph) - जिनमें से कुछ प्रस्तर युग में बने थे - इसका उदारहण है प्राचीन ग्रंथों में दर्राघ के सिद्धांत और उपाख्यानों के ज़रिये ये बताया गया है कि दरवाजों और घर के भीतरी कमरों, जहाँ मेहमान ठहराए जाते थे, उन्हें पेंट करना एक आम बात थी.
अजंताबाघ (Baghएलोरा और सित्तनवासल (Sittanavasal) के गुफा चित्र और मंदिरों में बने चित्र प्रकृति से प्रेम को प्रमाणित करते हैं.सबसे पहली और मध्यकालीन कला, हिन्दू, बौद्ध या जैन है. रंगे हुए आटे से बनी एक ताजा डिजाइन (रंगोली) आज भी कई भारतीय घरों (मुख्यातक दक्षिण भारतीय घरों) के दरवाज़े पर आम तौर पर बनी हुई देखी जा सकती है.
मधुबनी चित्रकला (Madhubani painting) , मैसूर चित्रकला (Mysore painting) , राजपूत चित्रकला (Rajput painting) , तंजौर चित्रकला (Tanjore painting) और मुगल चित्रकला (Mughal painting), भारतीय कला की कुछ उल्लेखनीय विधाएं हैं, जबकि राजा रवि वर्मानंदलाल बोसगीता वढेरा (Geeta Vadhera),जामिनी रॉय (Jamini Roy) और बी वेंकटप्पा[33] कुछ आधुनिक चित्रकार हैं.वर्तमान समय के कलाकारों में अतुल डोडिया, बोस कृष्णमक्नाहरी, देवज्योति राय और शिबू नटेसन, भारतीय कला के उस नए युग के प्रतिनिधि हैं जिसमें वैश्विक कला का भारतीय शास्त्रीय शैली के साथ मिलाप होता है.हाल के इन कलाकारों ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मान अर्जित किया है.देवज्योति राय के चित्र क्यूबा के राष्ट्रिय कला संग्रहालय में रखे गए है और इसी तरह नई पीढी के कुछ अन्य कलाकारों की कृतियाँ और शोध भी नोटिस किए गए है, इनमें सुमिता अलंग जैसे ख्यात कलाकार भी हैंLol
मुंबई की जहाँगीर आर्ट गैलरी (Jehangir Art Gallery) और मैसूर पैलेस (Mysore Palace) में कई अच्छे भारतीय चित्र प्रदर्शन के लिए रखे गए है.

मूर्तिकला[संपादित करें]

मध्य प्रदेश के प्रसिद्व खजुराहो मंदिर की हिन्दू मूर्तिकला.
भारत की पहली मूर्तिकला (sculpture) के नमूने सिन्धु घाटी सभ्यता के ज़माने के हैं जहाँ पत्थर और पीतल की आकृतियों की खोज की गयी.बाद में, जब हिंदू धर्म,बौद्ध धर्म, और जैन धर्म का और विकास हुआ, भारत के मंदिरों में एवं पीतल की कुछ बहद जटिल नक्काशी के नमूने बने.कुछ विशालकाय मंदिर जैसे की एलोरा ऐसे भी थे जिन्हें शिलाखंडों से नहीं बल्कि एक विशालकाय चट्टान को काट कर बनाया गया .
उत्तर पश्चिम में संगमरमर (stucco) के चूने, एक प्रकार की शीस्ट (schist), या मिट्टी (clay) से उत्पादित मुर्तिकला में भारतीय और शास्त्रीय हेलेनिस्टिक(Hellenistic) या संभावित रूप से ग्रीक-रोमन (Greco-Roman) प्रभाव का भारी मिश्रण देखने को मिलता है.लगभग इसी के साथ ही मथुरा की गुलाबी बलुए पत्थरों(sandstone) की मूर्तिकला भी विकसित हुई.इस दौरान गुप्त के शासनकाल में (६ वीं से 4 थी शताब्दी तक ) मूर्तिकला, श्रेष्ठ निष्पादन और मॉडलिंग की बारीकी में एक बहुत ही उच्च स्तर पर पहुंच गयी थी.ये और इसके साथ ही भारत के अन्य क्षेत्रों में विकसित हुई शास्त्रीय भारतीय कला ने समूचे दक्षिण पूर्वी केंद्र और पूर्व एशिया में हिन्दू और बौद्ध मूर्तिकला के विकास में अपना योगदान दिया.

वास्तुकला[संपादित करें]

राजस्थान स्थित उमैद भवन पैलेस कामारवाड़ हॉल
भारतीय वास्तुकला में शामिल है- समय और स्थान के साथ साथ लगातार नए विचारों को अपनाती हुई अभिव्यक्ति का बाहुल्य.इसके परिणामस्वरूप ऐसे वास्तुशिल्प का उत्पादन हुआ जो इतिहास के दौरान निश्चित रूप से एक निरंतरता रखता है.इसके कुछ बेहद शुरूआती उदहारण मिलते हैं शिन्धु घटी सभ्यता (२६००-१९०० ईसा पूर्व) में जिसमें सुनियोजित शहर और घर पाए जाते थे.इन शहरों का खाका तय करने में धर्म और राजा द्वारा संचालन की कोई महत्वपूर्ण भूमिका रही, ऐसा प्रतीत नहीं होता.
मौर्य और गुप्त साम्राज्य और उनके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में, कई बौद्ध वास्तुशिल्प परिसर, जैसे की अजंता और एलोरा और स्मारकीय सांचीस्तूप (Stupa) बनाया गया.बाद में, दक्षिण भारत में कई हिन्दू मंदिरों का निर्माण हुआ जैसे कीबेलूर (Belur) का चेन्नाकेसवा मंदिर (Chennakesava Temple), हालेबिदु(Halebidu) का होयसेल्सवर मंदिर (Hoysaleswara Temple), और सोमानाथपूरा (Somanathapura) का केसव मंदिर (Kesava Temple) , थंजावुर(Thanjavur) का ब्रिहदीस्वर मंदिर, कोणार्क (Konark) का सूर्य मंदिर (Sun Temple), श्रीरंगम (Srirangam) का श्री रंगनाथस्वामी मंदिर (Sri Ranganathaswamy Temple), और भट्टीप्रोलू (Bhattiprolu) का बुद्ध स्तूप (stupa) (चिन्ना लांजा डिब्बा और विक्रमार्का कोटा डिब्बा) में.अंगकोरवट, बोरोबुदुर और अन्य बौद्ध और हिंदु मंदिर जो की परम्परिक भारतीय धार्मिक भवनों की शैली में बने हैं, इस बात का संकेत देते हैं कि दक्षिण पूर्व एशियाई वास्तुकला पर भारतीय प्रभाव काफी ज्यादा है.
[[चित्र:Vadtaltemple.jpg|thumb| [[श्री स्वामीनारायण मंदिर, वडताल| वडताल (Vadtal), गुजरात में श्री स्वामीनारायण मंदिर]] ]] पश्चिम से इस्लामिक प्रभाव के आगमन के साथ ही , भारतीय वास्तुकला में भी नए धर्म कि परम्पराओं को अपनाना शुरू के गया.इस युग में बनी कुछ इमारतें हैं- फतेहपुर सीकरीताज महलगोल गुम्बद (Gol Gumbaz), कुतुब मीनार दिल्ली का लाल किला आदि, ये इमारतें अक्सर भारत के अपरिवर्तनीय प्रतीक के रूप में उपयोग की जाती हैं.ब्रिटिश साम्राज्य के औपनिवेशिक शासन के दौरान हिंद-अरबी (Indo-Saracenic) और भारतीय शैली के साथ कई अन्य यूरोपीय शैलियों जैसे गोथिक के मिश्रण को विकसित होते हुए देखा गया, .विक्टोरिया मेमोरियल (Victoria Memorial) या विक्टोरिया टर्मिनस (Victoria Terminus) इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं.कमल मंदिर (Lotus Temple) और भारत की कई आधुनिक शहरी इमारतें इनमें उल्लेखनीय हैं.
वास्तुशास्त्र (Vaastu Shastra) की पारंपरिक प्रणाली फेंग शुई (Feng Shui) के भारतीय प्रतिरूप की तरह है, जो कि शहर की योजना, वास्तुकला, और अर्गोनोमिक्स (यानि कार्य की जगह को तनाव कम करने के लिए और प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयोग होने वाला विज्ञान) को प्रभावित करता है.ये अस्पष्ट है कि इनमें से कौन सी प्रणाली पुरानी है, लेकिन दोनों में कुछ निश्चित समानताएं ज़रूर हैं. तुलनात्मक रूप से देखें तोफेंग शुई (Feng Shui) का प्रयोग पूरे विश्व में ज्यादा होता है.यद्यपि वास्तु संकल्पना के आधार पर फेंग शुई (Feng Shui) के समान है, इन दोनों में घर के अन्दर ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करने की कोशिश कि जाती है,(इसको संस्कृत में प्राण-शक्ति या प्राण (Prana) कहा जाता है और चीनी भाषा और जापानी भाषा में इसे ची (Chi) / की (Ki) कहा जाता है ) लेकिन इनके विस्तृत रूप एक दुसरे से काफी अलग हैं, जैसे की वो निश्चित दिशाएं जिनमें विभिन्न वस्तुओं, कमरों, सामानों आदि को रखना चाहिए.
बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण भारतीय वास्तुकला ने पूर्वी और दक्षिण एशिया को प्रभावित किया है.भारतीय स्थापत्य कला के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण जैसे की मंदिर टीला या स्तूप (stupa), मंदिर शीर्ष या शिखर(sikhara), मंदिर टॉवर या पगोड़ा (pagoda) और मंदिर द्वार या तोरण (torana) एशियाई संस्कृति का प्रसिद्ध प्रतीक बन गये हैं और इनका प्रयोग पूर्व एशिया (East Asia) और दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर किया जाता है.केन्द्रीय शीर्ष को कभीकभी विमानम् (vimanam) भी कहा जाता है.मंदिर का दक्षिणी द्वार गोपुरम अपनी गूढ़ता और ऐश्वर्य के लिए जाना जाता है.

मनोरंजन और खेल[संपादित करें]

वार्षिक सर्प नाव दौड़ (snake boat race) का प्रदर्शन पथानामथिट्टा (Pathanamthitta) के नज़दीक अरनमुला (Aranmula) पर पम्बा नदी(Pamba River) में ओणम (Onam) उत्सव के दौरान किया जाता है.
मनोरंजन और खेल के क्षेत्र में भारत में खेलों की एक बड़ी संख्या विकसित की गयी थी.आधुनिक पूर्वी मार्शल कला भारत में एक प्राचीन खेल के रूप में शुरू हुई और कुछ लोगों द्वारा ऐसा माना जाता है कि यही खेल विदेशों में प्रेषित किये गए और बाद में उन्ही खेलों का अनुकूलन और आधुनिकीकरण किया गया.ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में आये कुछ खेल यहाँ काफी लोकप्रिय हो गए जैसे फील्ड हॉकीफुटबॉल (सॉकर) और खासकर क्रिकेट.
हालांकि फील्ड हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, मुख्य रूप से क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है, बल्कि न केवल भारत बल्कि पूरे उपमहाद्वीप (subcontinent) में ये खेल मनोरंजन और पेशेवर तौर पर फल फूल रहा है.यहाँ तक कि हाल ही में क्रिकेट को भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंधों के लिए एक मंच के रूप में उपयोग किया जा चुका है .दोनों देशों ने क्रिकेट टीमों सालाना एक दुसरे के आमने सामने होती हैं और ऐसी प्रतियोगिता दोनों देशो के लिए काफी जोश भरी होती है.पारंपरिक स्वदेशी खेलों में शामिल हैं कबड्डी और गिल्ली-डंडा,जो देश के अधिकांश भागों में खेला जाता है.इंडोर(घर के भीतर खेले जाने वाले) और आउटडोर ( घर के बाहर खेले जाने वाले) खेल जैसे कि शतरंज (Chess), सांप और सीढ़ी (Snakes and Ladders), ताश (Playing cards), पोलो (Polo), कैरम (Carrom),बैडमिंटन (Badminton) भी लोकप्रिय हैं.शतरंज का आविष्कार भारत में किया गया था.
भारत में ताकत और गति के खेलों बहुत समृद्ध हैं.प्राचीन भारत में वज़न , कंचे या पास के रूप में पत्थर का प्रोयोग किया जाता था.प्राचीन भारत में रथ दौड़, तीरंदाजी, घुड़सवारी, सैन्य रणनीति, कुश्ती, भारोत्तोलन, शिकार, तैराकी और दौड़ प्रतियोगिताएं होती थीं.

लोकप्रिय मीडिया[संपादित करें]

टेलीविजन[संपादित करें]

भारतीय टेलिविज़न कि शुरुआत १९५९ में शिक्षा कार्यक्रमों के प्रसारण के परीक्षण के साथ हुई.[34] भारतीय छोटे परदे के कार्यक्रम १९७० के मध्य में शुरू किये गए.उस समय वहां केवल एक राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन था, जो कि सरकार द्वारा अधिकृत था, १९८२ में भारत में नै दिल्ली एशियाई खेलों के साथ टी वी प्रोग्रामिंग में क्रांति आई, उसी वर्ष भारत में पहली बार रंगीन टी वी आये.रामायण और महाभारत कुछ लोकप्रिय टेलीविजन श्रृंखलाओं में से थे.1980 के दशक के अंतिम हिस्से तक अधिक से अधिक लोगों के पास अपने टीवी सेट हो गए थे.हालांकि चैनल एक ही था, टीवी प्रोग्रामिंग संतृप्ति पर पहुँचा चुकी थी.इसलिए सरकार ने एक अन्य चैनल खोल दिया जिसमें कुछ भाग राष्ट्रीय प्रोग्रामिंग और कुछ भाग क्षेत्रीय प्रोग्रामिंग का था.इस चैनल को डीडी २ और बाद में डीडी मेट्रो के रूप में जाना जाता था.दोनों चैनलों पृथ्वी से प्रसारित थे.
१९९१ में, सरकार ने अपने बाजार खोले और केबल टेलीविजन की शुरुआत हुई.तब से उपलब्ध चैनलों की संख्या में एक बड़ा उछाल कर आया है.आज, भारतीय सिल्वर स्क्रीन अपने आप में एक बहुत बड़ा उद्योग है, और इसमें भारत के सभी राज्यों के हजारों कार्यक्रम है.छोटे परदे ने कई सिलेब्रिटी यानि मशहूर हस्तियों को जन्म दिया है और उनमें से कुछ आज अपने लिए राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके हैं.कामकाजी महिलाओं, और यहाँ तक की सभी प्रकार के पुरुषों में भी टी वि धारावाहिक बेहद लोकप्रिय हैं.छोटे परदे पर काम करने वाले कुछ अभिनेताओं ने बॉलीवुड में भी अच्छी जगह बनाई है.भारतीय टीवी, पश्चिमी टीवी की तरह ही विकसित हो चूका है और यहाँ भी कार्टून नेटवर्क, निकेलोदियन, एमटीवी इंडिया जैसे स्टेशन आते हैं.
इन्हें भी देखें: List of Indian television stations

सिनेमा[संपादित करें]

एक बॉलीवुड डांस नंबर की शूटिंग
बॉलीवुडमुम्बई स्थित भारत के लोकप्रिय फिल्म उद्योग का अनौपचारिक नाम है.बॉलीवुड और अन्य प्रमुख सिनेमाई केन्द्रों (बंगालीकन्नड़मलयालममराठी,तमिलतेलुगु (Telugu)) को मिलाकर व्यापक भारतीय फिल्म उद्योग का गठन होता है . सबसे ज्यादा संख्या में फिल्मों के निर्माण और बेचे गए टिकटों की सबसे बड़ी संख्या के आधार पर इसका उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा माना जाता है.
व्यावसायिक फिल्मों के अलावा, भारत में भी समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित सिनेमा का निर्माण हुआ है. जैसे की सत्यजीत रेऋत्विक घटक (Ritwik Ghatak), गुरु दत्त(Guru Dutt), के.एच. विश्वनाथ (K. Vishwanath), अदूर गोपालकृष्णन (Adoor Gopalakrishnan), गिरीश कासरवल्ली (Girish Kasaravalli), शेखर कपूर(Shekhar Kapoor), ऋषिकेश मुखर्जीशंकर नाग (Shankar Nag), गिरीश कर्नाडजी वी अय्यर (G. V. Iyer) जैसे निर्माताओं द्वारा बनाई गयी फिल्में.भारतीय फिल्म निर्देशक (Indian film directors), देखें )दरअसल, हाल के वर्षों में अर्थव्यवस्था के खुलने और विश्व सिनेमा की झलक मिलने से दर्शकों की पसंद बदल गयी है.इसके अलावा, अधिकांश शहरों में मल्टीप्लेक्स के तेजी से बढे है जिससे , राजस्व का स्वरूप भी बदलने लगा है.

रेडियो[संपादित करें]

मुंबई में फॉक्सहंट पर अप्रवीण रेडियो ऑपरेटर.
भारत में रेडियो प्रसारण १९२७ में, निजी स्वामित्व के दो ट्रांसमीटरों (transmitter) द्वारा बॉम्बे और कोलकाता में शुरू हुआ.१९३० में इनका राष्ट्रीयकारन किया गया और १९३६ तक इन्होने "भारतीय प्रसारण सेवा" नाम से काम किया. १९३६ में इनका नाम बदल कर, ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) कर दिया गया.यद्यपि १९५७ में आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदल कर आकाशवाणी कर दिया गया लेकिन आज भी यह ऑल इंडिया रेडियो के नाम से लोकप्रिय है. ऑल इंडिया रेडियो प्रसार भारती (ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) का एक अंग है.जो कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार की एक स्वायत्त संस्था है.यह प्रसार भारती के राष्ट्रीय टेलीविजन प्रसारणकर्ता दूरदर्शन की एक सहयोगी संस्था है. २० वीं शताब्दी के अंत के बाद से भारत में रेडियो आवृत्तियों एफ एम् और ए एम् बैंड को निजी क्षेत्र के प्रसारणकर्ताओं के लिए खोला दिया गया है लेकिन ऐसी सेवा ज्यादातर महानगरीय क्षेत्रों तक ही सीमित है .मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलौर जैसे शहरों में कई एनी निजी एफ एम् चैनल लोकप्रिय हिंदी और अंग्रेजी संगीत प्रसारित करते हैं, हालाँकि उन आकाशवाणी की तरह समाचार प्रसारित करने का अधिकार नहीं है. हाल ही में वर्ल्ड स्पेस (World Space) ने देश की पहली उपग्रह रेडियो सेवा का शुभारंभ किया.
इन्हें भी देखें: All India Radio

दर्शन शास्त्र[संपादित करें]

स्वामी विवेकानंद १९ वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली समाज सुधारकों में से एक थे.
विभिन्न युगों के दौरान भारतीय दर्शन का पूरे विश्व विशेषकर पूर्व में काफी प्रभाव पड़ा है.वैदिक काल के बाद, पिछले २५०० सालों में दर्शन के कई विभिन्न अनुयायी वर्ग जैसे कि बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के कई सम्प्रदाय विकसित हुए हैं.हालांकि, भारत ने भी तर्कवादबुद्धिवाद (rationalism), विज्ञानगणितभौतिकवाद (materialism),नास्तिकताअज्ञेयवाद (agnosticism) आदि की कुछ सबसे पुराणी और सबसे प्रभावशाली धर्मनिरपेक्ष परम्पराओं को जन्म दिया है जो कई बार इस वजह से अनदेखी कर दी जाती है क्योंकि भारत के बारे में एक लोकप्रिय धारणा ये है की भारत एक रहे हैं और एक 'रहस्यमय' देश है.
कई जटिल वैज्ञानिक और गणितीय अवधारणाओं जैसे की शून्य का विचार, अरब (Arab) की मध्यस्थता में यूरोप तक पहुंचा.कर्वाका (Cārvāka), भारत में नास्तिकता का सबसे प्रसिद्द अनुयायी वर्ग है, इसे कुछ लोगों द्वारा विश्व का सबसे पुराना भौतिकवादी अनुयायी वर्ग भी माना जाता है. ये उसी समय बन जब बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रारभिक दर्शन का निर्माण हो रहा था.५०० वर्ष ईसा पूर्व के पास की अवधि में भारतीय और वैश्विक दर्शन में एक तीव्र परिवर्तन आया था. और उसी समय समकालीन यूनानी (Greek) स्कूल भी उभर कर सामने आये थे.कुछ लोगों का मानना है की कुछ भारतीय दर्शन की अवधारणाओं से यूनान को परिचित कराय गया जबकि अन्य पारसी साम्राज्य के माध्यम से भारत में आये; सिकंदर महान के अभियान कजे बाद ऐसे पारस्परिक आदान प्रदान में वृद्धि हुई .
प्राचीन काल से ही भारत में दर्शन को दिए जाने वाले महत्त्व के अतिरिक्त, आधुनिक भारत ने भी कुछ प्रभावशाली दार्शनिकों को जन्म दिया है, जिन्होंने राष्ट्रीय भाषाके साथ साथ प्रायः अंग्रेजी में भी लिखा है.भारत के ब्रिटिशों द्वारा उपनिवेश बनाये जाने के दौरान, भारत के कुछ धार्मिक विचारकों ने विश्व भर में उतनी ही ख्याति अर्जित की जितनी की प्राचीन भारतीय ग्रंथों ने. उनमें से कुछ के कार्य को अंग्रेजी, जर्मन और अन्य भाषाओँ में अनुवादित भी किया गया. स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए और वहां उन्होंने विश्व धर्म संसद (World Parliament of Religions) में हिस्सा लिया, उन्होंने धरती हिला देने वाले या कहिये अत्यंत प्रभावशाली वक्तव्य से सबको प्रभावित किया, वहन आये ज्यादातर प्रतिनिधियों के लिए ये हिन्दू दर्शन से पहला साक्षात्कार था.
कई धार्मिक विचारक जैसे की महात्मा गाँधीरवीन्द्रनाथ टैगोर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य सदस्यों ने राजनीतिक दर्शन के नए रूप को जन्म दिया जिसने आधुनिक भारतीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद के आधार को बनाया.आज, एशिया का पहला आर्थिक विज्ञान में नोबेल मेमोरियल पुरस्कार (Nobel Memorial Prize in Economic Sciences) जीतने वाले अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री भारत को दुनिया के विचारों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक देश के रूप में प्रतिष्ठित कर रहे है.

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